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माता पार्वती के तांत्रिक स्वरूप में दस महाविद्याओं का वर्णन बहुत ज्यादा मिलता है। अक्सर तंत्र शास्त्र में दस महाविद्याओं की विशेष पूजा का महत्व रहा है। कहते हैं इस ब्रह्मांड के छोटे से अणु से लेकर बड़े से बड़े तारे तक दस महाविद्याएं ही कंट्रोल करतीं हैं। कुछ जगहों पर दस महाविद्याओं को माता दुर्गा के विशेष रूप भी कहते हैं। जानते हैं ये दस महाविद्याएं कौन हैं और इनकी पूजा से क्या लाभ मिलता है।
दस महाविद्याओं में मां का पहला स्वरूप है महाकाली का। मां की कृपा से समस्त कार्यों में सफलता मिलती है। माता का रूप घोर अंधकार का जरूर है, लेकिन वे भक्तों के जीवन में उजाला कर देतीं हैं। मां की कृपा से आत्मविश्वास, साहस, वीरता और ऐश्वर्य प्राप्त होता है।
मंत्र
ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिका
क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥
दूसरी महाविद्या है मां तारा। इनका स्वरूप कुछ कुछ मां काली की तरह ही है। माता बाघाम्बर वस्त्र धारण करतीं हैं। कहते हैं माता के पहले भक्त महर्षि वशिष्ठजी थे। मां की कृपा से ज्ञान, आर्थिक लाभ और वाक् सिद्धि मिलती है।
बीज मंत्र:
ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट्॥
तीसरी महाविद्या है मात षोडशी। मां को ललिता, राज राजेश्वरी, त्रिपुर सुंदरी सहित कई नामों से जाना जाता है। माता श्रीकुल की सर्वोच्च देवी हैं। माता की शरण लेने वाले व्यक्ति को जीवन में कभी किसी चीज की कमी नहीं होती हैं। मां की विशेष पूजा श्रीयंत्र पर भी की जाती है।
मंत्र-
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः॥
चौथी महाविद्या हैं माता भुवनेश्वरी। माता को प्रकृति स्वरूप पूजा जाता है। वे भक्तों को समस्त सिद्धियां देने वाली मानी गई है। इस त्रिभुवन की अधिष्ठात्री देवी कहलाती हैं माता भुवनेश्वरी। माता की उपासना इस पृथ्वी पर मिलने वाले समस्त सुख प्राप्त होते हैं।
बीज मंत्र:
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नमः॥
दस महाविद्याओं में अगली महाविद्या है माता भैरवी। माता भैरवी को त्रिपुर भैरवी, कोलेश भैरवी, रुद्र भैरवी सहित ना जाने कितने ही नामों से जाना जाता है। माता भैरवी व्यक्ति को निर्भय कर देती हैं और उसके साहस में अतुल्य वृद्धि होती है।
बीज मंत्र:
ॐ ह्रीं भैरवी कलौं ह्रीं स्वाहा॥
दस महाविद्याओं में माता धूमावती का स्थान विशेष है। उनकी उपसना से दरिद्रता, रोग, शोक सब दूर हो जाते हैं। कुछ जगहों पर उन्हें माता का विधवा स्वरूप भी कहा गया है। माता को ऋग्वेद मंत्रों में सुतरा कहा गया है। जिसका अर्थ संपूर्ण सुख देने वाली।
बीज मंत्र:
ॐ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा॥
माता छिन्नमस्ता या छिन्नमस्तिका का रूप भले ही डरावना हों, लेकिन मां सबका कल्याण करने वाली मानी जाती है। मां की कृपा से अन्न के भंडार भर जाते हैं और समस्त सुख जीव में आ जाते हैं।
बीज मंत्र:
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट् स्वाहा॥
माता बगलामुखी का दस महाविद्याओं में आठवां स्थान है। उन्हें पीला रंग बेहद पसंद है। इसी कारण उनका एक नाम पीतांबरा है। वे स्तंभन की देवी है। उनकी कृपा से समस्त शत्रुओं का नाश हो जाता है।
बीज मंत्र:
ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै ह्लीं ॐ नमः॥
महाविद्याओं में देवी मातंगी नवीं महाविद्या है। उनकी उपासना के आकर्षण शक्ति बढ़ती है। माता मातंगी कला की देवी हैं और भक्तों को मनचाहा वर देने वाली मानी गईं हैं। समस्त सुख प्राप्त करने, कला में पारंगत होने और पुरुषार्थ प्राप्ति के लिए मातंगी साधना करना अच्छा रहता है।
बीज मंत्र:
ॐ ह्रीं ऐं भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा॥
महाविद्याओ में देवी कमला का स्थान अंतिम है। उनका स्वरूप महालक्ष्मी की तरह है। कमला की उपासना से समस्त सिद्धियां प्राप्त हो जाती है। उनके कई मंत्र हैं, लेकिन श्री सुक्त से उनकी पूजा का विशेष महत्व है। माता कमला की पूजा से धन, सम्पति और समृद्धि प्राप्त होती है।
बीज मंत्र:
ॐ ह्रीं अष्ट महालक्ष्म्यै नमः॥
