
चतुर्थी 2026 - संतान की लंबी आयु और सौभाग्य का व्रत

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पूजा
चतुर्थी 2026 - संतान की लंबी आयु और सौभाग्य का व्रत
सकट चौथ या तिल चतुर्थी हिन्दू धर्म में मनाया जाने वाला एक अत्यंत महत्वपूर्ण त्योहार है, जो विशेष रूप से भगवान गणेश और संकटा माता को समर्पित है। यह व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी आयु, सौभाग्य और जीवन में आने वाली हर बाधा (संकट) को दूर करने के लिए रखती हैं। इसे संकष्टी चतुर्थी, तिल चतुर्थी या वक्रतुंडी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। साल 2026 में तिल चतुर्थी का व्रत 6 जनवरी को मनाया जाएगा।
कब है तिल चतुर्थी 2026
तिल चतुर्थी 2026 का व्रत हर महीने आने वाली चतुर्थी से भिन्न होता है, क्योंकि इसका एक विशेष महत्व है।
यह पर्व हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ मास (जनवरी-फरवरी) के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। वर्ष 2026 मे सकट चौथ 6 जनवरी, मंगलवार के दिन मनाया जाएगा।
माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को ही तिल चतुर्थी कहा जाता है। यह व्रत चंद्रमा के दर्शन और पूजन के बाद ही पूर्ण माना जाता है।
तिल चतुर्थी 2026 पर्व का महत्व और अनुष्ठान
तिल चतुर्थी 2026 का धार्मिक महत्व बहुत गहरा है, क्योंकि यह जीवन के सबसे बड़े ‘संकटों’ को हरने वाले विघ्नहर्ता गणेश और संकटा देवी से जुड़ा हुआ है। साथ ही ठंड के मौसम में हमारी खान-पान की आदत से जुड़ा है।
तिल चतुर्थी का महत्व
- संतान की रक्षा: इस व्रत का सबसे बड़ा उद्देश्य संतान को हर प्रकार के कष्ट और दुर्भाग्य से बचाना है। माताएं पूरी श्रद्धा से व्रत रखकर गणेश जी से अपने बच्चों के लिए सुरक्षा कवच मांगती हैं।
संकटों से मुक्ति: मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से जीवन के सभी बड़े संकट दूर हो जाते हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है।
(तिलकुट) का महत्व: इस दिन तिल और गुड़ से बना ‘तिलकुट’ प्रसाद के रूप में चढ़ाना अनिवार्य होता है। तिल को शुद्धता और पापों का नाशक माना जाता है, और तिलकुट गणेश जी को अत्यंत प्रिय है।
- पौराणिक कथा: इस दिन गणेश जी के जीवन से जुड़ी कथा सुनी जाती है, जिसमें माताएँ अपने व्रत के महत्व और लाभ को समझती हैं।
इस दिन शाम को विधि-विधान से पूजा की जाती है, जिसके केंद्र में गणेश जी और चंद्रमा होते हैं। पूजा में तिल, गुड़, दूर्वा, अक्षत और रोली का उपयोग किया जाता है।तिल चतुर्थी 2026 का व्रत अत्यंत कठिन और फलदायी माना जाता है, जिसका पालन नियम और निष्ठा के साथ किया जाना चाहिए।
तिल चतुर्थी 2026 और पूजा विधि
- संकल्प: सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र पहनें और संतान की सुरक्षा का संकल्प लेकर व्रत शुरू करें।
- फलाहार या निर्जला: यह व्रत मुख्य रूप से निर्जला (बिना पानी के) रखा जाता है, हालांकि शारीरिक क्षमता के अनुसार कुछ भक्त फलाहार (केवल फल और पानी) भी करते हैं।
- व्रत का समापन: व्रत का समापन तब होता है जब रात में चंद्रमा के दर्शन हो जाते हैं।
तिल चतुर्थी 2026 पूजा विधि
- चौकी की स्थापना: शाम को स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनें। एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर भगवान गणेश, संकटा माता और चंद्रमा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
- पूजा सामग्री: गणेश जी को दूर्वा (घास), रोली, अक्षत, और तिल-गुड़ से बने विशेष तिलकुट का भोग लगाएँ। भोग में गन्ना और शकरकंद भी रखा जाता है।
- संकट कथा: पूजा के दौरान सकट चौथ व्रत कथा अवश्य सुनें या पढ़ें। इसके बिना व्रत अधूरा माना जाता है।
- चंद्रमा को अर्घ्य: रात में चंद्रमा उदय होने पर पूजा करें। चंद्रमा को दूध, जल और अक्षत मिलाकर अर्घ्य (जल चढ़ाएँ) दें। इसके बाद ही व्रत खोलें और सबसे पहले तिलकुट का प्रसाद खाकर व्रत का पारण करें।
- सकट चौथ का व्रत और अनुष्ठान माता और संतान के बीच के अटूट प्रेम और विश्वास का प्रतीक है।
लेखक के बारे में: टीम त्रिलोक
त्रिलोक, वैदिक ज्योतिष, वास्तु शास्त्र और धार्मिक अध्ययनों के प्रतिष्ठित विषय विशेषज्ञों (Subject Matter Experts) की एक टीम है। प्राचीन ज्ञान और आधुनिक संदर्भ के समन्वय पर केंद्रित, त्रिलोक टीम ग्रहों के प्रभाव, आध्यात्मिक अनुष्ठानों और सनातन धर्म की परंपराओं पर गहन और शोध-आधारित जानकारी प्रदान करती है।
प्रामाणिकता के प्रति समर्पित, इस टीम में प्रमाणित ज्योतिषी और वैदिक विद्वान शामिल हैं, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि प्रत्येक लेख शास्त्र-सम्मत और तथ्यपरक हो। सटीक राशिफल, शुभ मुहूर्त और धार्मिक पर्वों की विस्तृत जानकारी चाहने वाले पाठकों के लिए त्रिलोक एक विश्वसनीय और आधिकारिक स्रोत है।